Wednesday, January 27, 2010

Kehna hai


" कहना है " दिल मैं बसे जज्बात ."कहना है" हर एक आंसू मैं छुपी बात ."कहना है "दिल कि हर ख्वाहिश हर एक तम्मना .मगर कैसे? आज मोसम बड़ा सुहाना है .खुली हवा मैं नीले आसमान के और देखते हुए और आसमान मैं अपनी आजाद जिन्दगी का जश्न मनाते उन पंछियों को देखके ये खयाल आया .काश इनकी जगह मैं होती .खुले आसमान मैं हर एक पंच्छी इतनी खुशीसे इधर से उधर इतने में  देखा  की एक अकेला  पंच्छी खामोश बैठे  आसमान कि और देख रहा है  .और मैं उसको , मैं सोचने लगी शायद मेरी तरेही कोई बदनसीब पंच्छी है.जिसके पास पंख तो है मगर उड़ नहीं सकता.शायद वो भी आसमान कि और उड़ते आपने साथियों को देखकर अपने आप को कोस रहा है .वो तो पंच्छी है उससे मैं उसके दिलकी बात कैसे पुछु ? फिर मैंने सोचा उसकी आंखे तो है .मैं वो तो पढ़ ही सकती हु .मेरी भी हालत बिल्कुल उसकि तरह है। दिल मैं इतनी बाते है कि इस खुले आसमान पर उन्हें लिखना शुरू करदू तो शायद खुदासे और सप्लीमेंट मांगनी पढेगी .लेकिन ये बाते न तो मैं किसीको बता सकती हो .और नाही इन्हें अब छुपा सकती हु.मैं लब्जो मैं तो नही कह सकती लेकिन इस पंच्छी कि तरह मेरे पास भी तो आंखे है जो सबकुछ साफ साफ कहती है तो क्यूँ उनकी बात कोई नही सुनता?या फिर सुनके अनसुना कर देते  है?मैं जानती हु कि आँखों कि बात हर किसीको सुनाई नही देती .आँखों कि बाते कानोसे नही दिलसे सुनी जाती है .मुझे तलाश है उसकी जो ये बाते दिलसे सुने.जिससे बात करने के लिए मुझे जबान कि जरुरत ना पड़े .लोग कहते है मैं बहोत सोचती हु.और इसीलिए शायद मैं नोर्मल नही हु .मतलब अब्नोर्मल .जो लोग मुझे ये कहते है उनसे एक बात कहनी  है की .अगर २ gb ke pen drive मैं १० gb ka data save हो जाये तो वो pen drive अब्नोर्मल ही कहलाता है। सोचती हु कोई एसा मिल जाये तो "कहना है ". सोच सोच में काफी वक़्त बीत गया और पता भी नहीं चला होशमे आकर देखा तो वो पागल अभी उसी जगह था और मैं भी तो उसिजगाह हु जहा मैं थी.हमारे दोनों के सामने खुला आसमान था .दोनोके पास पंख थे.दोनोके दिलमे ऊँची उडान भरने कि चाहत थी .मगर  ...मगर  ....

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